ये थी भारतीय लड़कियों का दिल चुराने वाली पहली cycle, फीचर्स देख हो सकते हैं हैरान

पहले के जमाने में ज्यादातर लोग साइकिल (cycle) से ही यात्रा किया करते थे। मोटरसाइकिल खरीदना सभी के बस की बात नहीं थी, कार तो फिर भी दूर की बात थी। चाहे काम पर जाना हो या शहर से सामान लाना हो, लोगों के लिए साइकिल ही आसान और सस्ता साधन था। उस समय भारत में एक ऐसा टू-व्हीलर आया जिसने साइकिल से बेहतर ऑप्शन दिया। 1972 में पूणे के काइनेटिक ग्रुप ने ‘लूना’ नामक मोपेड को 2,000 रुपये में लॉन्च किया। यह भारत की पहली मोपेड थी, जो साइकिल और बाइक के बीच में अपनी जगह बना रही थी।

लूना को देखकर शुरुआत में कुछ लोगों को हैरानी भी हुई थी, क्योंकि यह बाइक की तरह खुद चलती थी। इसमें पैडल भी थे जो साइकिल (cycle) के जैसे ही थे। लेकिन लूना में एक मोटर भी था, जिससे यह मोपेड चलती थी। लूना को मोटरसाइकिल और साइकिल दोनों की तरह चलाया जा सकता था। लूना ने बहुत जल्दी भारत में अपनी पहचान बनाई और लोगों ने इस मोपेड को खुशी से स्वीकार भी किया। भारत की इस पहली मोपेड के लिए अरुण फिरोदिया ने बहुत मेहनत और समर्पण किया था।

लूना मिडल क्लास के ग्राहकों की मांग को पूरा करने के लिए बनाई गई थी। हालांकि, यह बाइक से काफी हल्की थी। इसके अलावा इसे भारतीय सड़कों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था, जिनकी स्थिति खराब थी। अरुण फिरोदिया के सामने चुनौती थी कि 50 किलोग्राम की लूना भारतीय सड़कों, कमजोर पेट्रोल और ओवरलोडिंग के साथ कैसे संघर्ष करेगी।

फिरोदिया ने लूना को ओवरलोड के साथ कठिन और संकरे भरे रास्तों पर टेस्ट किया। इसके बाद उसे स्लिम बॉडी के साथ पेश किया गया। लूना को गांव-गांव की पहचान बनाने के लिए फिरोदिया ने कई अनोखे तरीकों का सहारा लिया। वहीं क्रिकेट टूर्नामेंट में लूना को ‘मैन ऑफ द मैच’ के पुरस्कार के रूप में दिया जाता था। इसके साथ ही अगर कोई विद्यार्थी किसी परीक्षा में टॉप करता तो उसे लूना द्वारा सम्मानित किया जाता।

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काइनेटिक लूना को प्रमोट करने के लिए क्रिएटिव एड भी चलाए जाते थे। ‘चल मेरी लूना’, ‘सफलता की सवारी’ और ‘लूना करती पक्का वादा, खर्चा कम, मजबूती ज्यादा’ जैसे एड के बाद लूना को काफी पॉपुलैरिटी मिली। समय के साथ लूना के कस्टमर बेस में भी बढ़ोतरी हुई। ऐसा भी कहा जाता है कि एक समय में लूना के 90 फीसदी कस्टमर सिर्फ़ महिलाएं थीं।

लूना को अमेरिका, अर्जेंटीना, ब्राजील, और श्रीलंका में एक्सपोर्ट किया जाता था। यूएस टाइम मैगजीन में इसके एड छपते थे। दूसरी तरफ, भारत में शानदार बाइक और स्कूटर्स का प्रसार शुरू हो गया था। यह तेजी से बढ़ते कंपीटिशन का दौर था और लोगों की पसंद भी बदल रही थी।

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