Scrap policy: क्या आप जानते हैं कि स्क्रैप सेंटर पर निर्धारित होते हैं पुरानी गाड़ियों के दाम? ये है पूरी कहानी

Scrap policy: भारत में प्रदूषण को कम करने के लिए सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। 2015 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने एक आदेश दिया था कि 15 साल से अधिक पुराने पेट्रोल वाहन और 10 साल पहले खरीदे गए डीजल वाहनों को कई राज्यों में अपंजीकृत किया जाएगा। इसके चलते भारत के लगभग सभी राज्यों में पुराने वाहनों को स्क्रैप करने के लिए फैसिलिटी शुरू की गई हैं। मारुति सुजुकी, टोयोटा, और टाटा जैसी ऑटोमोबाइल कंपनियां ने भी स्क्रैपेज सुविधाएं शुरू की हैं।

अपने पुराने वाहनों को स्क्रैप करवाने के लिए इसकी आधिकारिक वेबसाइट https://vscrap.parivahan.gov.in पर जाएं और उसमें दिए गए फॉर्म को भरें। फॉर्म में आवश्यक जानकारी जैसे नाम, पता, वाहन का नंबर प्लेट, वाहन का मॉडल आदि भरें। फिर इसके बाद फॉर्म सबमिट करें और उसे पंजीकृत करें। इसके बाद आपको निकटतम स्क्रैप सेंटर से संपर्क करना होगा।

एक और ऑप्शन ये है कि आप टोलफ्री नंबर 1800-419-3530 पर कॉल कर सकते हैं या फिर Scrappage facilities के व्हाट्सएप नंबर पर संदेश भेज सकते हैं। इसके बाद संबंधित स्क्रैपिंग सेंटर आपसे संपर्क करेगा और वाहन की कीमत तय करेगा। उसके बाद यदि वाहन के मालिक सहमत होते हैं तो वाहन को स्क्रैपिंग के लिए पंजीकृत किया जाएगा और जब वाहन स्क्रैप हो जाएगा तो इसके बाद मालिक को एक प्रमाणपत्र भी दिया जाएगा।

परिवहन आयुक्त एल वेंकटेश्वरलू ने एक पत्र में बताया है कि ELV (जीवन के अंत वाहन) का आरक्षित मूल्य लौह या धातु स्क्रैप के मूल्य के 90% के बराबर होता है। लौह स्क्रैप का प्रतिशत प्राप्त करने के लिए मानक सूत्र को कार्बन वजन के 65% पर लिया जा सकता है। जिसमें वाहन के कुल वजन में स्टैंडर्ड उपकरण, तरल पदार्थ और ईंधन शामिल होते हैं। पहले से ही स्क्रैप सेंटर इसकी मूल्यांकन को मैन्युअल तरीके से करते थे जो कई बार ग्राहकों को पसंद भी नहीं आता था।

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जब एक वाहन स्क्रैप सेंटर में पहुंचता है तो उसे वैज्ञानिक तरीके से नष्ट किया जाता है। इसके लिए अलग-अलग चरणों का पालन किया जाता है जैसे कि स्टेशन 1 पर टायर और सीएनजी (कंप्रेस्ड नेचुरल गैस) किट हटा दी जाती हैं। उसके बाद के चरण में बैटरी और फ्रीऑन गैस किट को नष्ट किया जाता है। फिर वाहन से सीटें, स्टीयरिंग, इंजन और रेडिएटर हटा दिए जाते हैं, जिससे एक खोखला धातु से बना ढांचा ही खाली शेष रह जाता है। इसके बाद धातु को ब्लॉकों में बदलने के लिए एक बेल प्रेस मशीन का उपयोग किया जाता है। इसके बाद कार के अन्य घटकों को पुनर्नवीनीकृत किया जाता है और इन्हें निजी कंपनियों को बेच दिया जाता है।

आपको बताते हैं कि वाहनों को स्क्रैप किए जाने की संख्या में कमी क्यों हो है? तो सबसे पहले देश में स्क्रैपेज पॉलिसी के बारे में ज्यादा जागरूकता नहीं होती है, जिसके कारण लोग इसके बारे में अनजान रहते हैं। दूसरा ये कि कई मामलों में वाहन के कागजों के साथ भी समस्याएं हो सकती हैं और इसके कारण स्क्रैपिंग प्रक्रिया रुक जाती है। बहुत सारे लोगों के पास पुराने वाहनों की आरसी नहीं होती है, जिसके कारण वे स्क्रैपिंग से बच जाते हैं। अगर किसी वाहन के लिए ऋण का भुगतान हो भी गया होता है तो वह परिवहन विभाग की वेबसाइट पर शो नहीं होता है, तो ऐसे मामलों में कार का पंजीकरण रद्द नहीं किया जा सकता है।

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